कवि कविता कोई मजाक नहीं ।
क्यों हंसे हमारी बातों सुन,
कुछ समझ में आया खाक नहीं।
1
यह भाजी दाल का भाव नहीं ।
यह मोल की हुई नाव नहीं ।
क्या कविता लिखना दाल रोटी,
यह गुड्डा गुड़िया के व्याह नहीं।
वुद्धिमान विवेकी की बिटिया,
बीमार की कोई खुराक नहीं ।
2
यह छंद बंद का चक्कर है।
ना हीं कंट्रोल की शक्कर है ।
जो करता तुकबंदी बातों में,
वह कवि नहीं घनचक्कर है।
जिसकी ओछी ओछी बातें ,
उसकी ऊंची नाक नहीं।
3
मनमस्तिक हिमगिरि से निकले ।
यह किसी सत्यता पर पिघले।
ले वहे विचारों की सरिता,
नव अलंकारों नवरस उगले।
यह भावों की गंगा पवित्र ,
जो नहाये फिर नापाक नहीं ।
4
यह किसी किसी को मिलती है।
जब किस्मत किसी की खुलती है।
दिनरात सींचता है माली,
तब एक कली खिलती है ।
कवि कलम कला इसकी जननी,
किसी मास्टरजी की चाक नहीं।
5
अब समझ गये तो चुप बैठो।
अगर गुर्दा है तो फिर ऐठो।
मत हारो यह हौसला बुलंद ,
आगे आओ भ्रम को मेटो।
विनोदार्थ विनोदी की कविता,
यह किसी स्वजन को हांक नहीं।
कवि कविता कोई मजाक नहीं।
Priyanka06
24-Jan-2023 10:52 PM
बहुत ही उत्कृष्ट रचनाआदरणीय
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पृथ्वी सिंह बेनीवाल
24-Jan-2023 04:09 PM
शानदार
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Renu
24-Jan-2023 02:54 PM
👍👍🌺
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